उपन्यास >> मोनेर मानुष मोनेर मानुषसुनील गंगोपाध्याय
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‘मोनेर मानुष’ बांग्ला के अप्रतिम कथाशिल्पी सुनील गंगोपाध्याय का अत्यन्त रोचक व विचार-प्रवण उपन्यास है...
‘मोनेर मानुष’ बांग्ला के अप्रतिम कथाशिल्पी
सुनील गंगोपाध्याय का अत्यन्त रोचक व विचार-प्रवण उपन्यास है।
‘मोनेर मानुष’–अर्थात किसी भी मनुष्य के अन्तर्मन में
साक्षीभाव से संस्थित मनुष्य ! यह उदात्त अर्थ खुलता है साईं, फ़कीर और
बाऊल कहकर याद किए जाने वाले ‘लालन’ की जीवनगाथा में।
लालन फ़कीर का जीवन तत्त्व ही ‘मोनेर मानुष’ की भावपीठिका है। अपने
बाऊल गीतों के लिए अमर हो चुके लालन का जीवन वृत्तान्त अत्यन्त कम मिलता
है। उपन्यासकार ने प्राप्त यत्किंचित तथ्यों, प्रचलित किस्सों,
किंवदन्तियों, आस्थाओं और अनुमानों को मिलाकर लालन का जो जीवनादर्श रचा है
वह अद्भुत है। रचते हुए सुनील गंगोपाध्याय ने कल्पना के जिन रंगों का
उपयोग किया है, वे संवेदना के सत्य को अलौकिक आभा प्रदान करते हैं।
‘कार बा आमि के बा आमर/आसाल बोस्तु ठीक नाहि तार’
(मैं किसका हूँ और कौन मेरा है, अभी तक असल पहचान नहीं हो पाई है)–यह
जिज्ञासा लालन फ़कीर के जीवन और गीतों का मूल है। लालन से उनके गुरु सिराज साईं ने कहा था–‘बहस मत करना, बहस से कोई लाभ नहीं
होता’। लालन निरन्तर कर्म के पर्याय बन जाते हैं। उपन्यास के चरित्र राबिया, सिराज साईं, कलुआ, कमली और भानती आदि मिलकर तत्कालीन सामाजिकता के बीच ‘वंचित विमर्श’ रेखांकित करते हैं। जातिगत अपमान,
भूख, एकान्त, चिन्तन और सहजीवन के अनेक हृदयस्पर्शी प्रसंग उपन्यास में उपस्थित हैं। लालन फ़कीर संकीर्णताओं और विषमताओं के मारे सर्वहाराओं के साथ जीकर उच्चतम मनुष्यता का सन्देश अपने गीतों में छोड़ जाते हैं। बांग्ला में
लिखे गये इस उपन्यास का हिन्दी अनुवाद सुशील कान्ति ने किया है। अनुवादक
ने मौलिक आस्वाद सुरक्षित रखते हुए हिन्दी की प्रकृति में उपन्यास को
प्रस्तुत किया है। इस अत्यन्त पठनीय और संग्रहणीय उपन्यास को पाठकों की
अपार सहृदयता प्राप्त होगी, ऐसा विश्वास है।
–सुशील सिद्धार्थ
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